माँ और क्या सिर्फ माँ
जब आँखों में नींद लिए तकिये पर मैं होता हुँ, ऐ माँ तेरे काँधे पर हीं सर रखकर मैं सोता हुँ। छोटी सी दुख हो या बड़ी जब आँखों से रोता हुँ, ऐ माँ तेरे काँधे पर हीं सर रखकर मैं रोता हुँ। कुछ पाने की चाहत में जब अपने अस्तित्व को खोता हुँ, ऐ माँ मैं सिर्फ तेरे आँचल में होता हूँ। बिखरे अरमानों को जब भी एक धागे में पिरोता हुँ, ऐ माँ आज भी मैं तेरे काँधे पर हीं सर रखकर सोता हुँ। छोटा सा हुँ या हुँ बड़ा जो भी जीवन में कर पाता हुँ, ऐ माँ हम अपने आप को तेरे चरणों में पाता हूँ। रूखी सुखी या हलुआ पुरी जो भी मैं खा पाता हूँ, ऐ माँ ये सब भी तेरे कारण ही कर पाता हूँ। आज भी मैं किसी कारण बस थोड़ा भी रुआँसा होता हुँ, ऐ माँ तेरे काँधे पर हीं सर रखकर मैं सोता हूँ। लेखक : लोकेश कुमार सिंह